February 7, 2025

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कारगिल के नायक: भीम राज थापा की वीरता की गाथा

देहरादून के भीम राज थापा, जो नागा रेजिमेंट से सेवानिवृत्त हो चुके हैं, ने 1999 के कारगिल युद्ध में अद्वितीय साहस का प्रदर्शन किया। जब भी वे अपनी कारगिल की कहानियां सुनाते हैं, तो उनका जोश देखते ही बनता है।

 

कारगिल युद्ध, भारतीय सेना की एक अद्भुत शौर्य गाथा है, जिसमें सैकड़ों वीर जवानों ने अपने प्राणों की आहुति देकर राष्ट्र की सुरक्षा और अखंडता की रक्षा की। इस युद्ध में भारतीय सैनिकों ने दुश्मनों को धूल चटाकर एक ऐतिहासिक विजय हासिल की। भीम राज थापा, जो इस युद्ध में अपनी बहादुरी के लिए जाने जाते हैं, कहते हैं कि 25 साल बाद भी कारगिल की शौर्य गाथा उन्हें आज भी रोमांचित कर देती है।

 

आज पूरे देश में कारगिल विजय दिवस की 25वीं वर्षगांठ पर कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं। इन आयोजनों में शहीद जवानों को श्रद्धांजलि अर्पित की जाती है और उनके साहस को याद किया जाता है, जिससे हर भारतीय गौरवान्वित महसूस करता है।

 

भीम राज थापा, जो देहरादून के मोहब्बेवाला के निवासी हैं, बताते हैं कि वे नागा रेजिमेंट में नायक के पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। 1999 के जून में, वे अपनी बटालियन के साथ जम्मू से होकर मुश्कोह घाटी पहुंचे और युद्ध का मोर्चा संभाला।

 

इस घाटी की ऊंचाई लगभग 11 हजार फीट थी, और वहां कारगिल युद्ध एक महीने से अधिक समय तक चला। इस दौरान कई साथी जवान घायल हुए, और कई ने देश की सुरक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी। फिर भी भारतीय सेना ने हिम्मत नहीं हारी और दुश्मनों का डटकर मुकाबला किया, जिसके परिणामस्वरूप कारगिल में विजय मिली।

 

पूर्व सैनिक भीम राज थापा की पत्नी, अनिता थापा, बताती हैं कि जब उनके पति युद्ध के लिए जून में रवाना हुए, तो इसके बाद उनसे कोई संपर्क नहीं हो सका। इस दौरान, करीब एक महीने तक वे ना तो सो पाईं और ना ही ढंग से खा सकीं। युद्ध में विजय प्राप्त करने के दस दिन बाद ही उन्हें अपने पति की सलामती की सूचना मिली, जिसका उन्होंने लंबे समय से इंतजार किया था।

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भीम राज थापा की वीरता की यह कहानी आज भी हमारे दिलों में गर्व और प्रेरणा का संचार करती है।